Saturday, November 27, 2010
Friday, November 26, 2010
Tuesday, June 1, 2010
Sunday, April 25, 2010
सीतापुर का जिला प्रशासन इन दिनों महिलाओ के पीछे चल रहा है. जुलाई 2009 में पहले इस जिले की महिलाओ ने अनाज बैंक की स्थापना की उसके बाद प्रशासन ने ग्रीन बैंक की शुरुआत की। इस मौके पर प्रशासन गाव की उन महिलाओ को पूरी तरह से भूल गया। कितना अच्छा होता की प्रशासन उन गरीब महिलाओ को एक मंच से सम्मानित करता ताकि ये महिलाये दुसरो के लिए रोल माडल बनती। अभी भी देर नहीं हुई है।प्रशासन को अपनी गलती सुधारनी चाहिए।
Friday, April 16, 2010
नैमिषारण्य के पवित्र् तीर्थस्थल
नैमीषारण्य में प्रवाहित होने वाली गोमती नदी का नाम ऋग्वेद एवं ब्राम्हण- ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत ग्रंथ में गोमती को सबसे पवित्र् नदी बताया गया हैा स्कन्द पुराण के ब्रम्हाखण्डार्न्तगत धर्मारण्य महात्म के प्रंसग में गंगा आदि नदियों के साथ गोमती को पावन माना गया हैा सभी पुराणों में गोमती की महिमा का बखान है, यह वैदिक कालीन नदियों में हैा नैमि षारण्य गोमती के पावन तट पर विद्वमान इआ कस्यपी गंगा ''साभ्रमती''प्रथम बार भागीरथ गंगा को प़थ्वी पर लाये थेा दूसरी बार कस्यप ऋषि नैमषि के ऋषियों के निवेदन पर शिव आराधना कर भगवान से गंगा लेकर नैमि ष आये नैमि ष में उसे कस्यपी गंगा कहा गया कस्यपी गंगा को ही साभ्रमती कहा गयाा उक्त कथा पदम पुराण में वर्णित हैा पदम पुराण में वर्णित हैा काचंनाक्षी गंगा स्कन्द पुराण के त़तीय खण्ड के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि नैमि षारण्य में आकाश से सरस्वती व गंगा का अवतरण किया था पद्रम पुराण में भी नैमि ष में '' गंगोदभे' का वर्णन हैा वामन पुराण के अनुसार नैमि ष में '' कांचनाक्षी '' सरस्वती का वर्णन मिलता हैा
चक्रतीर्थ
नैमि षारण्य का पवित्र्ाम तीर्थ नैमि षारण्य माना जाता है यहां भगवान प्रजापति के चक्र की नेमि से निर्मित र्तीथ हैा महाभारत के अनुसार पूर्वकाल में यहां पर धर्म चक्र प्रवर्तित हुआ था जिस कारण उसका नाम नैमि षारण्य पदाया
हनुमान गढी
हनुमान गढी का माहात्म्य इस प्रकार है नीमसार की हनुमान गढी का पौराणिक महत्व हैा कहा जाता है कि जब अहिरावण भगवान राम और लक्ष्मण को चुरा कर पाताल ले गया तो हनुमान जी ने उन्हें वहां से अपने कंधो पर बैठाकर इसी हनुमानगढी से धरती पर प्रकट हुये थेा यहां पर हनुमान जी की मनोहर प्रतिमा हैा कहते है कि इस प्रतिमा में हनुमान जी दक्षि ण दि शा की ओर रूख किए हैा साथ्ा ही उनके कधों पर भगवान राम और लक्ष्मण भी हैा
भौगोलिक स्थिति
भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश में लखनउ मण्डल के अर्न्तगत सीतापुर जिले के दक्षि ण भाग में गोमती नदी के पवित्र् टत पर सीतापुर जिले से 32 कि0मी0 एवं जनपद हरदोई से 40 कि0मी0 दूर पूर्व दि शा में समुद्र तल से 115 फिट की उचाई एवं 27-21 अक्षांस, 80-29 अशं देशान्तर पर स्थित हैा
नैमीषारण्य में प्रवाहित होने वाली गोमती नदी का नाम ऋग्वेद एवं ब्राम्हण- ग्रन्थों में मिलता है। महाभारत ग्रंथ में गोमती को सबसे पवित्र् नदी बताया गया हैा स्कन्द पुराण के ब्रम्हाखण्डार्न्तगत धर्मारण्य महात्म के प्रंसग में गंगा आदि नदियों के साथ गोमती को पावन माना गया हैा सभी पुराणों में गोमती की महिमा का बखान है, यह वैदिक कालीन नदियों में हैा नैमि षारण्य गोमती के पावन तट पर विद्वमान इआ कस्यपी गंगा ''साभ्रमती''प्रथम बार भागीरथ गंगा को प़थ्वी पर लाये थेा दूसरी बार कस्यप ऋषि नैमषि के ऋषियों के निवेदन पर शिव आराधना कर भगवान से गंगा लेकर नैमि ष आये नैमि ष में उसे कस्यपी गंगा कहा गया कस्यपी गंगा को ही साभ्रमती कहा गयाा उक्त कथा पदम पुराण में वर्णित हैा पदम पुराण में वर्णित हैा काचंनाक्षी गंगा स्कन्द पुराण के त़तीय खण्ड के अनुसार मार्कण्डेय ऋषि नैमि षारण्य में आकाश से सरस्वती व गंगा का अवतरण किया था पद्रम पुराण में भी नैमि ष में '' गंगोदभे' का वर्णन हैा वामन पुराण के अनुसार नैमि ष में '' कांचनाक्षी '' सरस्वती का वर्णन मिलता हैा
चक्रतीर्थ
नैमि षारण्य का पवित्र्ाम तीर्थ नैमि षारण्य माना जाता है यहां भगवान प्रजापति के चक्र की नेमि से निर्मित र्तीथ हैा महाभारत के अनुसार पूर्वकाल में यहां पर धर्म चक्र प्रवर्तित हुआ था जिस कारण उसका नाम नैमि षारण्य पदाया
हनुमान गढी
हनुमान गढी का माहात्म्य इस प्रकार है नीमसार की हनुमान गढी का पौराणिक महत्व हैा कहा जाता है कि जब अहिरावण भगवान राम और लक्ष्मण को चुरा कर पाताल ले गया तो हनुमान जी ने उन्हें वहां से अपने कंधो पर बैठाकर इसी हनुमानगढी से धरती पर प्रकट हुये थेा यहां पर हनुमान जी की मनोहर प्रतिमा हैा कहते है कि इस प्रतिमा में हनुमान जी दक्षि ण दि शा की ओर रूख किए हैा साथ्ा ही उनके कधों पर भगवान राम और लक्ष्मण भी हैा
भौगोलिक स्थिति
भारतवर्ष के उत्तर प्रदेश में लखनउ मण्डल के अर्न्तगत सीतापुर जिले के दक्षि ण भाग में गोमती नदी के पवित्र् टत पर सीतापुर जिले से 32 कि0मी0 एवं जनपद हरदोई से 40 कि0मी0 दूर पूर्व दि शा में समुद्र तल से 115 फिट की उचाई एवं 27-21 अक्षांस, 80-29 अशं देशान्तर पर स्थित हैा
Monday, April 12, 2010
Monday, April 5, 2010
आइये चलते है नैमिश दर्शन को जहां हम आपको बतायेगें और दिखायेगें अनेको रहस्य जो न आप ने कभी सुने होगें और न ही देखे ही होगें परन्तु ये वास्तव में सत्य और प्रमाणित है।
सीता की मथानी
बहुत पुरानी कहावत प्रचलित है जब भगवान श्री राम को 14 वर्ष का बनवास हुआ था तब भगवान श्री राम ने अपना समय नीमसार में व्यतीत किया था वहा पर इस मथानी का प्रयोग माता सीता करती थी साथ ही कहावत है कि जो व्यक्ति अभिमान से वशीभूत होकर कहता है कि मै इस मथानी को उठा लूगा वह व्यक्ति कदापि मथानी को हिला भी नही सकता है परन्तु जो व्यक्ति श्रद्वा भाव से मथानी को उठाने से पूर्व मथानी के चरण छू कर भक्ति भाव से उठाता है तो वह इसे बच्चे के खिलौनो की तरह उठा सकता हैा यह प्रयोग मैने स्वयं देखा है मेरे कई मित्र् नैमिश दर्शन पर गये थे तो मैने रास्ते में यह बात बताई कई लोगो ने अभिमान से कहा कि हुह इसको उठाने में क्या है परन्तु वे लोग उसे उठाने की दूर हिला न सके साथ ही में मेरा एक मित्र् यह देख रहा था जब उससे उठाने को कहा गया तो वह बोला जब सब मोटे मोटे लोग उठा चुके है और हिला भी नही पाये तो मै भला कैसे इस पवित्र् मथानी को हिला सकूगां पर कहा गया कि जब यहां तक आये हो प्रयास कर के देखो सबके कहने पर मित्र् ने मथानी के पैर छूकर मन ही मन प्रभू श्रीराम का स्मरण कर मथानी को उठाने का प्रयास किया आश्चर्य मथानी फूल की तरह हवा में उठ गयी।
सीता की मथानी
बहुत पुरानी कहावत प्रचलित है जब भगवान श्री राम को 14 वर्ष का बनवास हुआ था तब भगवान श्री राम ने अपना समय नीमसार में व्यतीत किया था वहा पर इस मथानी का प्रयोग माता सीता करती थी साथ ही कहावत है कि जो व्यक्ति अभिमान से वशीभूत होकर कहता है कि मै इस मथानी को उठा लूगा वह व्यक्ति कदापि मथानी को हिला भी नही सकता है परन्तु जो व्यक्ति श्रद्वा भाव से मथानी को उठाने से पूर्व मथानी के चरण छू कर भक्ति भाव से उठाता है तो वह इसे बच्चे के खिलौनो की तरह उठा सकता हैा यह प्रयोग मैने स्वयं देखा है मेरे कई मित्र् नैमिश दर्शन पर गये थे तो मैने रास्ते में यह बात बताई कई लोगो ने अभिमान से कहा कि हुह इसको उठाने में क्या है परन्तु वे लोग उसे उठाने की दूर हिला न सके साथ ही में मेरा एक मित्र् यह देख रहा था जब उससे उठाने को कहा गया तो वह बोला जब सब मोटे मोटे लोग उठा चुके है और हिला भी नही पाये तो मै भला कैसे इस पवित्र् मथानी को हिला सकूगां पर कहा गया कि जब यहां तक आये हो प्रयास कर के देखो सबके कहने पर मित्र् ने मथानी के पैर छूकर मन ही मन प्रभू श्रीराम का स्मरण कर मथानी को उठाने का प्रयास किया आश्चर्य मथानी फूल की तरह हवा में उठ गयी।
Thursday, March 18, 2010
Subscribe to:
Posts (Atom)